मजदूर (शिकार भुखमरी या कोरोना के )
मजदूर (शिकार भुखमरी के या कोरोना के)
पिछले ब्लॉग में आप को सिर्फ इतना बता के छोड़ दिया था कि जिम्मेवार कौन है ?
सरकार,मजदूर या हम समाज वाले ।
खैर आज तो सबकी बारी आयेगी । सबसे पहले थोड़ा सरकार पर बात कर ले । सरकार ने हर वो संभव चीज किया जो उसके हाथ में था जैसे कि पैसे का डायरेक्ट अकाउंट में ट्रांसफर । राशन फ़्री में 3 महीने तक । गैस 3 बार फ़्री में । जगह जगह खाने कि मुफ्त में व्यवस्था ।
मजदूर ( जवाबदेह कौन )
फिर हम को सुन ने में अच्छा लगा कि वाह इतना सब तो सरकार ने इन्हें दिया ही है फिर इनको क्या दिक्कत , मुफ्त में खा रहे है ,पैसे मिल रहे है , राशन , गैस सब मिल रहे है । फिर थोड़ा थोड़ा जलन भी होने लगी की इन्हे सब मिल रहा है मगर फिर भी ये रोड पर क्यों घूम रहे है क्यों घर जाने की जिद्द कर रहे है । क्यों पैदल ही घर की तरफ निकल पड़े ।
मजदूर (क्यों का जवाब अब मिलेगा )
एक कहानी से शुरुआत करता हूं । एक आदमी दिल्ली और यूपी के बॉर्डर पर पुलिस द्वारा पकड़ा गया पैदल घर की तरफ जाते हुए । पुलिस के रोकने पर रोने लगा कि " साहब घर जाने दो हाथ जोड़ता हूं " साहब ने पूछा कहां जाना है तो बोला साहेब बिहार जाना है 8-10 दिन में पैदल पहुंच हो जाऊंगा तो साहब ने बोला कि अरे ट्रेन जाएगी तो चले जाना। वो अब फुट फुट कर रोने लगा और जो उसने बोला वो सुन के आपकी आंखों में भी आंसू भर जायेगा। उसने बोला साहेब घर पर बीवी अकेली है और 2 छोटी लड़की भी है साहब 8 साल के बाद बहुत मिन्नत से भगवान ने एक लड़का दिया था पिछले 3 महीने से उसकी तबीयत खराब थी , इस लॉक डाउन के बाद घर पर पैसा भी नहीं भेज पा रहा था और घर पर डॉक्टर भी नहीं इलाज कर रहे थे साहब अब वो नहीं रहा इस दुनिया में एक बार उसका मुंह देख लेने दो , जीते जी तो उसको नहीं देख पाया अब पत्नी को बोला हुआ कि आ रहा हूं रखे रखना मेरे जिगर के टुकड़े को ।फिर साहेब ने उन्हें कैसे भी घर पहुंचा दिया । धन्यवाद ऐसे साहब का ।
ऐसे बहुत सारे कहानी है साहब , दुर्घटना तो अमीर गरीब के घर देख कर नहीं आती है , मगर अमीर तो अपनी परिजनों की अंतिम यात्रा में पहुंच जाते है और मैंने ऐसे बहुत सारे गरीबों को देखा है रोते रोते सोशल मीडिया पर पोस्ट डालते हुए की "साहब घर पर बाबूजी की लाश पड़ी है अकेला बेटा हूं कोई क्रिया कर्म करने वाला नहीं है जाने की अनुमति दे दो पैदल ही निकल जाऊंगा ।
मजदूर (और भी बचा है )
एक आई एस अधिकारी ने ट्रॉली बैग पर एक बच्चे को सोते देखा और उसकी मां को उस बैग की घसीटते तो बोला कि ये कोई बड़ी बात नहीं है ऐसा तो हम बचपन में भी किया करते थे ।
साहेब बचपन में या जवानी में तो सब लोग मंदिर दर्शन में घंटों खड़े रहते है और हमें भगवान के दर्शन हो जाते है मगर इन बच्चों और उनकी मा पिता को कौन से भगवान मिलेंगे घर जाने पर । उन्हें तो आपकी राज्य कि सरकार टूट फूटे विद्यालय में खिचड़ी खाने की बिना शौचालय के डाल देगी । और अगर आप अपनी गाड़ी से जाओगे या आप भी कोटा फैक्ट्री से हो तो सरकार आपके लिए जूस और घर पर ही रखने कि अनुमति दे देगी ।
आज भी बिहार , यूपी ,एमपी के इतने मजदूर है कि आज भी आपको हाई वे पर पैदल जाते दिखाई देंगे और साहब मै एक आंकड़ा बताता हूं जितना मजदूर आप अमीर लोगों के वायरस से नहीं मरे ना उतना पैदल घर जाते किसी गाड़ी के नीचे , किसी ट्रेन के नीचे , साइकिल चलाते चलाते दिल की धड़कन बंद होने से मर गए है ।
" सरकार ने तो इनके लिए राशन फ़्री में दिया मगर हम समाज के लोग तो उनके राशन में भी घपला कर गए "।
मजदूर ( अंत )
एक बात समझ लीजिए साहेब उपर वाला ना सभी के कर्म देखता है बिना किसी गलती कि इन मजदूरों को अफवाह फैला के पैदल जाने को मजबूर करने वालों के भी ।
याद रखियेगा अगर वो वापस नहीं आए ना तो आपकी जिंदगी रुक जाएगी फिर आप किस रिक्शा वालों को थोड़ी से गलती पर गाली और पिटाई करोगे। किस मजदूर को पैसे काम करवा के काट लोग बिना किसी गलती के। किसको फ़्री में बिजली , पानी के नाम पर मूर्ख बना लोगे । किस गार्ड से सैल्यूट करवा के अपनी इज्जत बढ़वा लोगे ।
साहेब वो अपने गांव में भूखे कभी नहीं मर सकते ये उन्हें भी अब पता चल गया है वो तो यहां ज्यादा कमाने के लिए आए थे मगर उन्होंने तो यहां आके सब कुछ किया दिन रात काम आपके लिए इस देश के लिए और आपने एक मुसीबत में उनको घर से निकल भागने को मजबूर कर दिया ।
साहेब शुरुआत हो चुकी है उनकी भी और आपके कर्मों के भी ।
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