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मई, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मोदी जी के 1 साल ( 1 Year of Modi 2.0)

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मोदी जी के 1 साल                                                                    30 मई 2019 , चुनाव के रिजल्ट के लगभग 1 सप्ताह के बाद मोदी जी के दूसरी सरकार कि शुरुआत थी । सबसे पहले मंत्रिमंडल और विभाग पर सबको नजर टिकी हुई थी इसके पीछे कुछ कारण थे और वो कारण था सुषमा जी का चुनाव से दूर होना जिसका मतलब सरकार से दूर होना लग रहा था और उनकी छवि बहुत बड़ी हो गई थी विदेश मंत्री रहते लोगों को सेवा करने की सोशल मीडिया पर जिससे ये बात साफ थी कि उनके जैसा विदेश मंत्री कि खोज , दूसरी खबर थी जेटली सर की बीमारी जिसके बाद उन्होंने खुद ही सरकार से अलग रखने कि बात कह दी थी । तीसरी जो सबसे बड़ी बात थी कि अमित शाह को कौन सी जिम्मेदारी मिलेगी या दूसरी तरफ आप ये बोल सकते है कि सरकार में नंबर 2 कौन होगा ।  खैर ये सब हुआ , अमित शाह गृह मंत्री बने , विदेश मंत्रालय के एक अफसर जिनके पिता जी बहुत बड़े रणनीतिकार थे उनको विदेश मंत्री का पद मिला । राजनाथ जी को रक्षा मंत्री तो निर्मला जी को वित्त मंत्री मिला बाकी सब तो ठीक ठाक ही था । हैदराबाद से किशन रेड्डी या ओडिशा से एक किसान और साधु की जिंदगी जीने वाले नेता

बिहार में रोजगार ( बिहार मांगे रोजगार )

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बिहार में रोजगार एगो गाना सुनिए पहले हमारे बेरोजगार और मजदूर भाइयों पर फिर कहानी शुरू करेंगे ।  हमारे पिछले ब्लॉग में हमने जंगलराज से शुरुआत की थी अब लालटेन प्रेमी लोग गुस्सा होके फेसबुक पर रिपोर्ट कर दिए चलिए कोई बात नहीं इस से क्या होगा । सच अभी जेल में जिंदगी काट रहा है और 9वी फेल बेटा अभी इकोनॉमिक्स पढ़ा रहा है । चलिए समझने वाले समझ गए होंगे अब उस से आगे बढ़ा जाए एगो नारा के साथ।          "बिहार में बहार है , नितिशे कुमार है " चलिए आज तनी इनका लेते है खबर नारे का कुछो और मत समझ जाइएगा ।  जंगल राज के खात्मे के नाम पर बिहार में सत्ता मिली तीन दोस्तों को जो अपने चौथे दोस्त के 15 साल के सत्ता से गुस्सा हो गए थे । 2005 का समय था वो नेताओ को लगा कि उन लोगो ने हराया है जंगलराज को मगर गफलत में मत रहिएगा उ त चुनाव आयोग था जे पहली बार निष्पक्ष चुनाव करा लिया और नेता लोग जीत गए । अच्छा उ नारा याद है जो उपर लिखे थे बताते है क्या है वो उसमे जो बहार है ना उसका मतलब विकास होता है अरे वो पड़ोसि वाला छोरा विकास्वा का बात नहीं कर रहे है । ई नीतीश जी वाला विकास । सबसे पहले पिछ

मोदी 2.0 ( मोदी लहर या मोदी सुनामी )

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मोदी 2.0 (मोदी लहर या मोदी सुनामी ) आज 23 मई है पिछले साल आज ही के दिन बीजेपी ने मोदी जी के नेतृत्व में 303 सीट जीतकर मोदी 2.0 का आगाज किया था ।    आज हम आपको जीत से पहले की कुछ तथ्य बताने कि कोशिश करेंगे ।      चुनाव से पहले मोदी जी को छवि को धूमिल करने के वो सभी प्रयास हुए जो 2015 में बिहार चुनाव से पहले हुए थे जैसे कि अवॉर्ड वापसी , यू न में रोते हुए चिट्ठी लिखना , मीडिया चैनल के बार बार सीट कम होते हुए दिखाना , राफेल नाम कि रॉकेट से दलाली जोड़ना , चौकीदार चोर है जैसे नारे लगाना । आज हम यहां पर ये सभी चीजों की ऐसी तैसी करेंगे।  तो शुरुआत करते है अवॉर्ड वापसी गैंग से । पहले समझ लीजिए ये अवॉर्ड मिलते कैसे थे इन सबको । इसकी कुछ शर्त थी जैसे कि आपको केंद्र सरकार के लिए लॉबी बनाना , केंद्र की उपलब्धि पर किताबे लिखना , केंद्र के विरोध में चल रहे न्यूज को दबाना , देश विदेश में केंद्र के समर्थन में भाषण और पैसे जुटाना।  आप अपने कला में कितने माहिर है इनसे इस अवॉर्ड का कोई महत्व नहीं रहता था आपके एनजीओ में बाहर से पैसा आते रहे और आप को महारत हासिल हो केंद्र कि चापलूसी मे

बिहार मांगे रोजगार ( Industry in Bihar )

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बिहार मांगे रोजगार  ये आज की कहानी नहीं है ये तो बहुत दिनों से दिल में उठ रहे सवालों का बाहर निकलना है। आज इस करोना जैसी महामारी के समय में आपने पूरे देश से मजदूरों को घर जाने के लिए रोते बिलखते देखा होगा । आपने इस बीमारी से ज्यादा मजदूरों को रोड पर ,पटरी पर मरते देखा और सुना होगा ।     आपके मन में जिज्ञासा होगी की यार ये लोग कहां से आए है और आपके यहां इतने दिनों से मजदूर , छात्र , इंजिनियर आपके राज्य में रह रहे थे ।                  कौन है ये ?? क्यों ये अपने राज्य के बदले आपके यहां आते है ??? सबका जवाब मिलेगा ।   ये लोग बिहार से आए हुए है इसमें सिर्फ बिहारी ही नहीं यूपी के भी लोग है मगर आज हम सिर्फ बिहार से पलायन के लिए जिम्मेवार लोगों को पोल खोलेंगे।  अकेले दिल्ली में इनकी संख्या 40 लाख है , मुंबई ,बैंगलोर,गुजरात,पंजाब में भी इनकी संख्या इसी बराबर में है । आप अपने दिल पर जब हाथ रख कर सोचोगे ना की ये लोग आपसे किस मामले में कमजोर है तो आप सोचोगे किसी भी मामले में ये आपसे कम नहीं होंगे। पूरे देश के सबसे कर्मठ मजदूर , सबसे मेघावी छात्र , सबसे कुशल इंजिनियर , सबसे ज्यादा सर

लॉक डाउन 4.0 दिशा निर्देश

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  लॉकडाउन 4.0 (दिशानिर्देश) 1.स्कूल ,कॉलेज, मॉल और सिनेमा हॉल को देश में कहीं भी खोलने की अनुमति नहीं दी जाएगी। 2. कोविद -19 के नियंत्रण क्षेत्रों को छोड़कर असुरक्षित इलाकों में सैलून, नाई की दुकानों और ऑप्टिकल दुकानों की अनुमति दी जा सकती है। 3. रेलवे और घरेलू विमान सेवाओं के क्रमिक और आवश्यकता आधारित परिचालन अगले सप्ताह से होने की संभावना है, लेकिन दोनों क्षेत्रों के पूर्ण रूप से खुलने की संभावना नहीं है।  4. स्थानीय ट्रेनें, बसें और मेट्रो सेवाएं देश में लाल क्षेत्रों के गैर-नियंत्रण क्षेत्रों में सीमित क्षमता के साथ चलना शुरू कर सकती हैं।  5. यात्रियों की संख्या पर प्रतिबंध के साथ लाल क्षेत्रों में ऑटो और टैक्सियों को भी अनुमति दी जा सकती है।  6. इन सेवाओं में से अधिकांश को गैर-रोकथाम क्षेत्रों में जिलों के भीतर अनुमति दी जाएगी और राज्य सरकारों को उनके फिर से खोलने पर कॉल लेने के लिए अधिकृत किया जा सकता है।  7. नारंगी और लाल क्षेत्रों में बाजार खोलने की शक्तियां राज्य सरकारों को दी जा सकती हैं, जो गैर-जरूरी सामानों की दुकानों को खोलने की अनुमति देते

मजदूर (शिकार भुखमरी या कोरोना के )

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      मजदूर (शिकार भुखमरी के या कोरोना के)   पिछले ब्लॉग में आप को सिर्फ इतना बता के छोड़ दिया था कि जिम्मेवार कौन है ? सरकार,मजदूर या हम समाज वाले । खैर आज तो सबकी बारी आयेगी । सबसे पहले थोड़ा सरकार पर बात कर ले । सरकार ने हर वो संभव चीज किया जो उसके हाथ में था जैसे कि पैसे का डायरेक्ट अकाउंट में ट्रांसफर । राशन फ़्री में 3 महीने तक । गैस 3 बार फ़्री में । जगह जगह खाने कि मुफ्त में व्यवस्था ।   मजदूर ( जवाबदेह कौन )   फिर हम को सुन ने में अच्छा लगा कि वाह इतना सब तो सरकार ने इन्हें दिया ही है फिर इनको क्या दिक्कत , मुफ्त में खा रहे है ,पैसे मिल रहे है , राशन , गैस सब मिल रहे है । फिर थोड़ा थोड़ा जलन भी होने लगी की इन्हे सब मिल रहा है मगर फिर भी ये रोड पर क्यों घूम रहे है क्यों घर जाने की जिद्द कर रहे है । क्यों पैदल ही घर की तरफ निकल पड़े ।   मजदूर (क्यों का जवाब अब मिलेगा )  एक कहानी से शुरुआत करता हूं । एक आदमी दिल्ली और यूपी के बॉर्डर पर पुलिस द्वारा पकड़ा गया पैदल घर की तरफ जाते हुए । पुलिस के रोकने पर रोने लगा कि " साहब घर जाने दो हाथ जोड़ता हूं "

मजदूर ( दर्द , संवेदना , बोझ ) Part-1

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दर्द हम सबको किसके लिए , मजदूर के लिए हुआ नहीं नहीं । वो ट्रेन की पटरी के नीचे आ गए तो हम सबने कहा कि पटरी सोने के लिए थोड़े ही होती है । वो परदेश में भूखे तड़प कर पोस्ट डाल रहे थे तब हम सबने कहा कि कौन बोला था जाने को बाहर कमाने को । जब उन्हें पुलिस पीट रही थी घर से बाहर निकल कर पैदल अपने घर की और जाने पर तो हम सब ये बोल रहे थे कि यार ये लोग पागल है क्या जो बाहर निकल रहे है इनके कारण सबमें वायरस आ जाएगा। जब ये लोग अपने गांव पहुंचे तब वहां के लोगों ने उन्हें मारा पीटा की तुम शहर से बीमारी लेके आए होगे । मेरे इसी अंतिम शब्द ने हम शहर वालों की औकात याद दिला दी कि " तुम लोग शहर से अमीर लोगों वाली बीमारी लेके आए मतलब समझ जाओ की क्या नजरिया है गांव वालों की हम शहर वालों के लिए" । चलिए आगे बढ़ते है । जिन मजदूरों को आप आसानी से बरगला कर दिल्ली,मुंबई,बैंगलोर,हैदराबाद,गुजरात से भगा रहे है वहां पर अब आपके घर में नौकरानी से लेके प्लंबर ,ड्राइवर से लेके ऑफिस का चपरासी सबका काम अब आपको खुद करना पड़ेगा। कहा से लाओगे मजदूर आपके फैक्ट्री के लिए , कहा से लाओगे आप मजदूर आपके घर ,सड़क के क

Mother's Day Special ( मां का आशीर्वाद )

   " भरोसा रखो वो किसी का बुरा नहीं होने देती " '  तेरे दर पर आने से पहले मै बड़ा कमजोर होता हूं । तेरी दहलीज को छु के मै खुद को कुछ और पाता हूं '                  ' हर रिश्ते में मिलावट देखी , कच्चे रंगो की सजावट देखी ।                    लेकिन सालों साल देखा है मां को , ना उनके चेहरे पर कभी थकावट देखी।                                    ना उनके ममता में कभी मिलावट देखी  ।। ' आप सही समझे मै आज दुनिया के सबसे छोटे शब्द मां  और दुनिया के सबसे शक्तिशाली शब्द के बारे में बात कर रहा हूं ।    आज आपको एक कहानी बता रहा हूं । " एक बार रोड पर एक सब्जी का ठेला लगा हुआ था और उसपर कोई भी दुकानदार नहीं था तब मैं वहा गया कि कोई इस दुकान पर क्यों नहीं है तो वहा एक पर्ची रखा हुआ था जिसमें लिखा था कि मेरी मां बीमार है और उसके दवा और खाना देने के लिए घर में कोई और नहीं है तो मुझे बार बार जाना पड़ता है  और अगर आप जल्दबाजी में नहीं है तो ठेला पर रेट लिस्ट लगा हुआ है आप उस के हिसाब से पैसे नीचे डाल देना मैंने वैसा ही किया तो वहां देखा पहले से बहुत

प्रथम चरण (को - कोई , रो - रोड पर , ना - ना निकले )

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इस दूसरे लेख में , आपको जनता कर्फ्यू के बाद की कहानी बताऊंगा। 22 मार्च की वो सुहावनी शाम जिसे हम सबने थाली और ताली के साथ कोरोना को भगाने को जो सोच मोदी जी कहे के पूरे विपरीत रखी थी उस से मोदी जी तो जरूर दुखी होंगे मगर हमलोग तो मस्त खाना पीना कर के सो गए । " बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी " ये कहावत हमलोग को सिर्फ खाने के समय याद आता होगा । हम भारतीय अपने ऊपर आने वाला काल को अभी तक पहचान नहीं पा रहे थे लेकिन हमारे सबके लाडले मोदी जी ने इसे समझ लिया था कि उन्हें कैसे बचाना है अपने देश को और उन्होंने जनता कर्फ्यू कर के उसे समझ भी लिया था कि उन्हें किस चीज पर लोगो को जागरूक करना पड़ेगा। खैर आई वो रात मोदी जी आए और क्या कहे पहले आप इस वीडियो संदेश में सुन लीजिए फिर मैं बताऊंगा। जिस समय मोदी जी टीवी पर आकर हम सबको बता रहे थे उस समय देश में 500 से ज्यादा केस हो गए थे इस चीन निर्मित वायरस से । अब इस समय जो मोदी जी ने एक बहुत बड़ा संदेश दिया और उस संदेश के पिछे हम भारत वासियों की मानसिकता थी जो मोदी जी भली भांति जान गए थे क्युकी हम सब तो फुंसी से बवासीर बनाने में माहिर है स

जनता कर्फ्यू ( शुरुआत भौकाल की )

   ये लॉक डाउन शब्द तो इस से पहले अलग अलग ही सुना था सबने।  बचपन में या तो घर में माता पिता के द्वारा बदमाशी  करने पर लॉक कर दिया जाता था या स्कूल में मैडम सीट डाउन बोलती थी लेकिन यहां तो भौकाल की शुरुआत हो गई थी। अब हम सबको ये तो पता चल गया था कि कोरोना कर के कोई वायरस आ गया है और वो चाइना से आया है लेकिन हम लोग कहां डरने वाले थे इस से , क्युकी हमें चाइनीज माल पर उतना ही विश्वास था जितना अपने बिहार के नेताओं से विकास पर था मगर ये तो पहली बार धोखा देने के मूड में था तभी देश के एक मंत्री महोदय ने चाइना वाले लोगो के साथ एक वीडियो बनाया तब मुझे लगा कि अब तो कोई भी वायरस हो वो भी भाग जाएगा ही।                                   मगर तब तक 22 मार्च की वो दिन भी आने का इंतजार कर रही थी 2 दिन पहले मोदी जी ने देश के नाम संबोधन कि घोषणा की ,नोटबंदी जैसा डर लगा । मगर अब पैसे ही कहां बचे थे जो डर लगे । तब आए हमारे मोदी जी और जो उन्होंने इसमें नया शब्द जनता कर्फ्यू लाया उस कर्फ्यू से इस बार डर जैसा नहीं लगा। सोचा एक दिन परिवार के  साथ  रविवार बिता  के देखा जाएगा, तभी पता चला सूत्रों से कि देश