मजदूर ( दर्द , संवेदना , बोझ ) Part-1


दर्द हम सबको किसके लिए , मजदूर के लिए हुआ नहीं नहीं । वो ट्रेन की पटरी के नीचे आ गए तो हम सबने कहा कि पटरी सोने के लिए थोड़े ही होती है । वो परदेश में भूखे तड़प कर पोस्ट डाल रहे थे तब हम सबने कहा कि कौन बोला था जाने को बाहर कमाने को । जब उन्हें पुलिस पीट रही थी घर से बाहर निकल कर पैदल अपने घर की और जाने पर तो हम सब ये बोल रहे थे कि यार ये लोग पागल है क्या जो बाहर निकल रहे है इनके कारण सबमें वायरस आ जाएगा। जब ये लोग अपने गांव पहुंचे तब वहां के लोगों ने उन्हें मारा पीटा की तुम शहर से बीमारी लेके आए होगे । मेरे इसी अंतिम शब्द ने हम शहर वालों की औकात याद दिला दी कि " तुम लोग शहर से अमीर लोगों वाली बीमारी लेके आए मतलब समझ जाओ की क्या नजरिया है गांव वालों की हम शहर वालों के लिए" । चलिए आगे बढ़ते है । जिन मजदूरों को आप आसानी से बरगला कर दिल्ली,मुंबई,बैंगलोर,हैदराबाद,गुजरात से भगा रहे है वहां पर अब आपके घर में नौकरानी से लेके प्लंबर ,ड्राइवर से लेके ऑफिस का चपरासी सबका काम अब आपको खुद करना पड़ेगा। कहा से लाओगे मजदूर आपके फैक्ट्री के लिए , कहा से लाओगे आप मजदूर आपके घर ,सड़क के कामों के लिए । लेकिन हम शहर वाले तो पहले से ही स्वार्थी है हमें तो लगा कि इन मजदूरों के कारण ही ये बीमारी हमारे घर तक आयेगी इसीलिए इन्हे भगा दो । बाद में वापस बुला लेंगे । मगर आप इस सच्चाई को भी अच्छे से जानते है कि ये बीमारी आप शहर वालों के कारण ही फैली है । सरकार के देश बंदी की फैसले ने जरूर हम सबको ये विश्वास दिलाया कि घर पर बैठ के हम सब रहेंगे तो सुरक्षित रहेंगे मगर वो मजदूर को कौन विश्वाश दिलवाएगा की , फैक्ट्री खुलेगी , रिक्शे चलेंगे सब काम शुरू होगा । सरकारी आदेश आता है कि उन्हें सरकारी जगहों पर खाना खिलाया जाएगा,बड़े बड़े आंकड़े पेश किए जा रहे है सरकारों से कि हमने 10लाख लोगो को खिलाया फिर जनाब ये रोड पर अपने घर ,भूखे , नंगे पैरों से चलने वाले लोग कौन है , जी है जनाब ये वही मजदूर है जिन्हे आपके छल कपट की भनक नहीं है वो आपके वादों में बह के आपको वोट देते है और आप आज जिनको बचाने के नाम पर इन लोगों को घर से बेघर कर रहे है ना वो लोग आपके वोट करने के दिन अपने परिवार के साथ छुट्टी मनाते है मगर जनाब ये पूरा खेल ना पैसों का है । सरकार को ये पता होता है कि वोट के समय हम इन्हें लालच देकर फिर से वोट पा लेंगे और ये बेचारे मजदूर जिन्हे आपके छल की भनक नहीं है वो फिर से वोट करेंगे । जनाब आपको एक अंतर बताता हूं, जितने इन मजदूरों को घर ले जाने के लिए पूरी दुनिया परेशान नहीं थी उस से ज्यादा कोटा फैक्ट्री में पढ़ने वाले बच्चो के लिए थी , भाई साहब बच्चे तो मजदूरों के भी होते है । और जब ट्रेन अपने घर को आई तो इन मजदूरों को खिचड़ी दिया गया और सरकारी स्कूल में रखा गया समझ सकते है आप वहा की हालत । और हमारे बड़े पैसों वालों के बच्चे जो कोटा फैक्ट्री में पढ़ रहे थे उन्हें स्टेशन पर जूस , सैंडविच के साथ घर में ही रहने की व्यवस्था करवाई गई । आप बोलेंगे ये लेखक तो बहुत ही पक्षपाती हो गए, देश के भविष्य की परवाह नहीं कर रहे है मेरा एक सवाल है आपसे मजदूर के बच्चे सिर्फ मजदूर ही बनेंगे और वो सिर्फ सरकारी स्कूल के है भविष्य है क्या । सरकार के हिसाब से पैसे ,राशन , खाना मिल रहा है इन्हे फिर सोचिए ये अपने घर 1000 किमी पैदल ही कैसे अपने छोटे छोटे बच्चो को लेकर निकल गए । कितने लोगों ने तो रास्ते में ही दम तोड़ दिया । ये जो दुख है ये इतनी आसानी से भूलने वाली नहीं है और ना मै आपको भूलने दूंगा । अभी एक वीडियो डाल के छोड़ रहा हूं देखना और फिर पता चलेगा आप कितने खुश हो शहर वालों इन मजदूरों को घर भेजकर

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